Home » ? विक्रम बेताल ?

? विक्रम बेताल ?

अपराधी कौन?

आज की विक्रम बेताल की कहानी का शिर्षक है “अपराधी कौन?”
राजा विक्रमादित्य ने वृक्ष से पहले की ही भांति बेताल को नीचे उतारा और उसे कंधे पर डालकर अपने गंतव्य की ओर चल पड़ा। जाते हुए राजा से बेताल बोला, ‘राजन, इस बार तुम्हें एक छोटी सी कथा सुनाता हूं, सुनो।’

बनारस में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसके हरिदास नाम का पुत्र था। हरिदास की सुन्दर पत्नी थी। नाम था लावण्यवती। लावण्यवती अपूर्व सुंदरी थी। ऐसा लगता था जैसे तिलोत्तमा आदि स्वर्ग की अप्सराओं का निर्माण करके विधाता को जो कुशलता प्राप्त हुई थी, उसी के द्वारा उसने उस बहुमूल्य रूप-लावण्य वाली स्त्री को बनाया था।

एक दिन वे दोनों जब महल के ऊपर छत पर सो रहे थे कि आधी रात के समय मदनवेग नामक गंधर्व-कुमार आकाश में घूमता हुआ उधर से निकला। उसने पति के पास सोई हुई लावण्यवती को देखा, जिसके वस्त्र थोड़े खिसक गए थे और उसके अंगों से सुंदरता झलक रही थी। वह लावण्यवती के रूप पर मुग्ध होकर उसे उड़ाकर ले गया। जागने पर हरिदास ने देखा कि उसकी स्त्री नहीं है तो उसे बड़ा दुख हुआ और वह मरने के लिए तैयार हो गया। लोगों के समझाने पर वह मान तो गया; लेकिन यह सोचकर कि तीरथ करने से शायद पाप दूर हो जाय और स्त्री मिल जाय, वह घर से निकल पड़ा।

चलते-चलते वह किसी गाँव में एक ब्राह्मण के घर पहुँचा। उसे भूखा देख ब्राह्मणी ने उसे कटोरा भरकर खीर दे दी और तालाब के किनारे बैठकर खाने को कहा। हरिदास खीर लेकर एक पेड़ के नीचे आया और कटोरा वहाँ रखकर तालाब मे हाथ-मुँह धोने गया।

इसी बीच एक बाज किसी साँप को लेकर उसी पेड़ पर आ बैठा। जब वह उसे खाने लगा तो साँप के मुँह से ज़हर टपककर कटोरे में गिर गया। हरिदास को कुछ पता नहीं था। वह उस खीर को खा गया।

ज़हर का असर होने पर वह तड़पने लगा। वह सोचने लगा कि ‘जब विधाता ही प्रतिकूल हो जाता है, तब सब कुछ प्रतिकूल हो जाता है। इसलिए दूध, घी और शक्कर से बनी यह खीर भी मेरे लिए विषैली हो गई।’

यह सोचकर वह गिरता-पड़ता उस ब्राह्मणी के घर जा पहुंचा और उस ब्राह्मणी से आकर बोला, ‘देवी, तुम्हारी दी हुई खीर से मुझे जहर चढ़ गया है, अत: कृपा करके ऐसे आदमी को बुलाओ जो जहर उतार सकता है। अन्यथा तुम्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा।’ यह कहते ही हरिदास के प्राण निकल गए।

यद्यपि वह स्त्री निर्दोष थी और उसने अतिथि का सत्कार भी किया था। फिर भी उसके पति ने क्रुद्ध होकर उसे ब्रह्मघातिनी कहकर घर से निकाल दिया। उस ब्राह्मणी ने यद्यपि उचित कार्य किया था, फिर भी उसे झूठा कलंक लगा और उसकी अवमानना हुई इसलिए वह तपस्या करने के लिए तीर्थस्थान को चली गई।

बाद में, धर्मराज के सम्मुख इस बात पर बहस हुई कि सांप, बाज और खीर देने वाली उस स्त्री में से ब्रह्महत्या का श्राप किसे लगा? लेकिन कोई निर्णय नहीं हो सका।

यह कथा सुनाकर बेताल ने विक्रमादित्य से कहा, ‘राजन्! धर्मराज की सभा में तो इस बात का निर्णय नहीं हो सका, अत: अब तुम बताओ कि साँप, बाज, और ब्राह्मणी, इन तीनों में ब्रह्महत्या का अपराधी कौन है?’

राजा ने कहा, ‘हे बेताल, इनमें से कोई नहीं। साँप को तो वह पाप लग ही नहीं सकता क्योंकि वह तो स्वयं ही विवश था और वह शत्रु के वश में था। उसका शत्रु बाज उसे खाने ही जा रहा था। बाज इसलिए नहीं कि वह भूखा था। जो उसे मिल गया, उसी को वह खाने लगा। ब्राह्मणी इसलिए नहीं कि उसने अपना धर्म समझकर उसे खीर दी थी और अच्छी दी थी। जो इन तीनों में से किसी को दोषी कहेगा, वह स्वयं दोषी होगा। मैं तो उस जड़बुद्धि हरिदास को ही इसका दोषी मानता हूं, जो खीर को बिना जांच किए, उसका रंग देखे खा गया था। व्यक्ति को सामने परोसे गए भोजन की एक नजर जांच तो अवश्य ही करनी चाहिए कि वह कैसा है। इसीलिए तो बुद्धिमान लोग भोजन करने से पहले किसी कुत्ते को टुकड़ा डालकर उसकी परीक्षा करते हैं कि भोजन सामान्य है अथवा जहरीला। अत: मेरे विचार से तो हरिदास ही अपनी मृत्यु का जिम्मेदार है।

विक्रमादित्य ने बिलकुल सही उत्तर दिया था, अत: बेताल संतुष्ट हुआ, किंतु राजा के मौन भंग करने के कारण फिर उसकी जीत हुई और वह विक्रमादित्य के कंधे से उतरकर पुन: पेड़ पर जा लटका। धीर ह्रदय वाला राजा विक्रमादित्य फिर उसे लाने के लिए उस वृक्ष की ओर चल पड़ा।

error: Content is protected !!
Scroll to Top